Saturday, 16 March 2019

मोदी के ‘नए भारत’ में कैसे सुनिश्चित होगा सामाजिक न्याय

योजना मासिक मे प्रकाशित मेरा लेख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त क्रांति के 75 साल पूरे होने के अवसर पर देशवासियों के बीच एक नए भारत (न्यू इंडिया) के निर्माण की बात कही. उन्होने कहा कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से अगले पांच साल तक लगातार अंग्रेजों के खिलाफ कुछ ना कुछ होता रहा जिसमें हर देशवासी किसी ना किसी स्तर पर जुड़ा था. आम लोगों ने मान लिया था कि अब स्वतंत्रता का लक्ष्य दूर नहीं और 1947 में वो लक्ष्य पूरा भी कर लिया गया. प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि अगर इसी तरह अगले पांच साल भी हर देशवासी कुछ मुद्दों को लेकर अपना योगदान करे तो एक नए भारत निर्माण का निर्माण हो सकता है. इसके लिए सभी अपनी रुचि के विषय चुन सकते हैं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सुझाए गए कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर काम करके एक नए भारत के निर्माण में अपना योगदान दिया जा सकता है - भ्रष्टाचार मुक्त भारत, स्वच्छ भारत, गरीबी मुक्त भारत, आतंकवाद मुक्त भारत, सांप्रदायिकता मुक्त भारत और जातिवाद मुक्त भारत. अगले पांच साल इन विषयों पर काम करके निश्चय ही एक नए भारत का निर्माण हो सकता है जो समृद्ध, समर्थ, समरस होगा और राष्ट्र परमवैभव की ओर अग्रसर हो सकेगा.
इस लेख में प्रधानमंत्री मोदी के सपने के नए भारत के एक महत्वपूर्ण पहलू पर चर्चा की गई है जो जातिवादमुक्त भारत के मुद्दे से जुड़ा है. इसमें इस विषय पर विचार किया गया है कि नए भारत में जातीय वैमनस्यता कैसे कम होगी, सामाजिक न्याय कैसे सुनिश्चित होगा, समतामूलक और समरस भारत का निर्माण कैसे होगा.

Monday, 11 March 2019

सामाजिक न्याय, सुशासन और मोदी सरकार

सामाजिक न्याय पर योजना मे प्रकाशित मेरा लेख
[इस लेख के दो हिस्से हैं. पहले हिस्से में ये बताने की कोशिश की गई है कि मोदी सरकार सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए कैसे वितरणीय न्याय (Distributive Justice) और प्रक्रियात्मक न्याय (Procedural Justice) को बराबर महत्व दे रही है. दूसरे हिस्से में केंद्र सरकार द्वारा सामाजिक के वंचित औऱ कमजोर वर्गों के लिए उठाएं गए प्रमुख कदमों की चर्चा की गई है.]

मूल्यों और संसाधनों का आधिकारिक तौर पर निर्धारण ही राजनीति है. लंबे समय तक सही तरीके से ऐसा करते रहने से समाज में न्याय स्थापित होता है और राजनीति सामाजिक बदलाव का बड़ा माध्यम बनती है. जहां तक न्याय की बात है तो उसकी एक परिभाषा होती है- जो बराबर हैं उन्हें बराबरी का हक देना और जो असमान हैं उन्हें अधिक महत्व देना. अगर राजनीति और न्याय की दोनो परिभाषाओं को एक साथ देखें तो सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में कठिनाई नहीं होगी.
मूल्यों और संसाधनों का न्यायसंगत तरीके से, आधिकारिक रूप से निर्धारण ही राजनीति का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए जिससे सामजिक न्याय सुनिश्चित होगा और राजनीति एक बड़े सामाजिक बदलाव की साक्षी बनेगी. न्याय सुनिश्चित करते समय दो स्तर पर ध्यान देना चाहिए. एक तो वितरण के स्तर पर और दूसरा क्रियान्वयन के स्तर पर. इसीलिए न्याय के दो प्रकार पर हम यहां चर्चा करेंगे- वितरणीय न्याय और प्रक्रियात्मक न्याय.

Monday, 4 March 2019

News18इंडिया Debate: Politics over air strikes on Pakistan


डॉ. भीम राव आंबेडकर - देश और समाज की एकता के महान रक्षक

डॉ. आंबेडकर पर रोजगार समाचार मे प्रकाशित मेरा लेख

भारत एक सनातन सभ्यता है. यहां संघर्ष, समन्वय और समरसता साथ-साथ चलती रहती है. लेकिन समस्या तब होती है जब कुछ लोग अपने हित साधने के लिए समाज में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करने लगते हैं जिससे कभी-कभी देश की एकता और अखंडता को भी खतरा उत्पन्न होने लगता है. भारत में जाति से जुड़ी समस्याएं भी कुछ ऐसा ही रूप धर कर सामने आ रही हैं. ऐसे समय में संविधान निर्माता डॉ. भीम राव आंबेडकर और भी  प्रासंगिक होकर उभरते हैं.
गांधी से आंबेडकर की ओर
इस दशक में आंबेडकर हमारे सामाजिक-राजनीतिक विमर्श में कुछ इस तरह उभरे हैं कि वो महात्मा गांधी से भी महत्वपूर्ण नजर आते हैं. इसका एक कारण ये हो सकता है कि जहां गांधी ने अहिंसक तरीकों से सिर्फ राजनीतिक आजादी और समानता की बात कही वहीं आंबेडकर शुरू से सामाजिक-आर्थिक समानता की बात कर रहे थे. देश को 1947 में आजादी मिल गई और संविधान ने हम सब को एक व्यक्ति-एक मत के माध्यम से राजनीतिक समानता भी दे दी. पिछले सत्तर साल में राजनीतिक समानता का काम काफी हद तक पूरा भी हो चुका है लेकिन समाजिक और आर्थिक स्तर पर समानता और आजादी मिलना अभी बाकी है. भारतीय संविधान के प्रमुख लक्ष्यों में जिस सामाजिक और आर्थिक समानता, न्याय और स्वतंत्रता की बात कही गई है उस पर कुछ काम ही हो पाया है और बहुत तरीकों से काम किया जाना बाकी है. ऐसे ही दौर में डॉ. आंबेडकर एक प्रकाश स्तंभ बनकर उभरते हैं जो हम सबको रास्ता दिखाते हैं. डॉ. आंबेडकर स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी इस बात के समर्थक थे कि राजनीतिक आजादी के कोई मायने नहीं होंगे अगर सामाजिक-आर्थिक स्तर पर शोषण जारी रहा और हमें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.
डॉ. आंबेडकर ने एक ऐसे भविष्य की कल्पना की थी जो पूरी तरीके से परिवर्तनकारी होगा. भारत को अगर सही अर्थों में एक प्रगतिशील, आधुनिक और विकसित समाज और राज्य बनने की तरफ तेजी से बढऩा है तो आंबेडकर के विचारों को मूर्त रूप देने के लिए अथक प्रयास करने होंगे.

21वीं सदी में युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता

स्वामी विवेकानंद पर रोजगार समाचार मे प्रकाशित मेरा लेख

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे आदर्श युवा हुए हैं, जो भारत में जन्मे परंतु जिन्होंने विश्वभर के करोड़ों युवाओं को प्रेरित किया. 1893 में शिकागो धर्म संसद में दिए गए भाषण की बदौलत वे पश्चिमी जगत के लिए भारतीय दर्शन और अध्यात्मवाद के प्रकाशस्तंभ बन गए. उसके बाद से वे युवाओं के लिए एक सदाबहार प्रेरणा स्रोत रहे हैं. 21वीं सदी में जबकि भारत के युवाओं को नई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, वे अपने दायरों से बाहर आ रहे हैं और बेहतर भविष्य की तलाश कर रहे हैं. ऐसे में स्वामी विवेकानंद उनके लिए और भी प्रासंगिक हो गए हैं. जीवन अगर सार्थक नहीं है, तो उसे सफल नहीं कहा जा सकता. युवाओं की सबसे बड़ी खोज ऐसे सार्थक जीवन की है, जो हृदय को प्रेरित, मस्तिष्क को मुक्त और आत्मा को प्रज्ज्वलित करे. स्वामी विवेकानंद इसे अच्छी तरह समझते थे. उनके विचारों को इस चार सूत्री मंत्र के जरिए समझा जा सकता है, जिसमें सार्थक जीवन के लिए भौतिक, सामाजिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक खोज अनिवार्य है. भौतिक खोज से उनका अभिप्राय: है - मानव शरीर की देखभाल करना और ऐसी गतिविधियों को अंजाम देना, जो शारीरिक कष्टों को कम करने वाली हों. इसका लक्ष्य युवाओं को कोई कार्य करने के लिए शारीरिक दृष्टि से तैयार करना है. अगला स्तर सामाजिक खोज का है, जिसमें ऐसी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है, जो भौतिक कष्ट कम करने वाली हों. अस्पतालों, अनाथालयों और वृद्धावस्था आश्रमों का संचालन इसी स्तर के अंतर्गत आता है. अगला उच्चतर स्तर बौद्धिक खोज का है. इसके अंतर्गत विद्यालय, महाविद्यालय संचालित करना और जागरूकता एवं सशक्तिकरण कार्यक्रमों का संचालन शामिल है. किसी व्यक्ति द्वारा अपना बौद्धिक स्तर उन्नत बनाना, ज्ञान प्राप्त करना और उसका समाज में प्रचार-प्रसार करना इस श्रेणी के अंतर्गत आता है. गहन चिंतन करने वालों के लिए वे सर्वोच्च स्तर की आध्यात्मिक सेवा का सुझाव देते थे, जिसमें ध्यान और साधना शामिल है. परंतु ये स्तर कोई जल विभाजक नहीं है, कोई व्यक्ति एक स्तर पर काम करते हुए अन्य स्तर पर भी काम कर सकता है, जो उसकी खोज, क्षमता और पहुंच पर निर्भर है. उनकी खोज में बदलाव होने पर वे अन्य स्तरों पर भी जा सकते हैं.

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This Eklavya won't sacrifice his thumb

My article on aspirations of the Indian youth was published in The Pioneer .  You can read a version of the article here                  ...