Monday, 11 March 2019

सामाजिक न्याय, सुशासन और मोदी सरकार

सामाजिक न्याय पर योजना मे प्रकाशित मेरा लेख
[इस लेख के दो हिस्से हैं. पहले हिस्से में ये बताने की कोशिश की गई है कि मोदी सरकार सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए कैसे वितरणीय न्याय (Distributive Justice) और प्रक्रियात्मक न्याय (Procedural Justice) को बराबर महत्व दे रही है. दूसरे हिस्से में केंद्र सरकार द्वारा सामाजिक के वंचित औऱ कमजोर वर्गों के लिए उठाएं गए प्रमुख कदमों की चर्चा की गई है.]

मूल्यों और संसाधनों का आधिकारिक तौर पर निर्धारण ही राजनीति है. लंबे समय तक सही तरीके से ऐसा करते रहने से समाज में न्याय स्थापित होता है और राजनीति सामाजिक बदलाव का बड़ा माध्यम बनती है. जहां तक न्याय की बात है तो उसकी एक परिभाषा होती है- जो बराबर हैं उन्हें बराबरी का हक देना और जो असमान हैं उन्हें अधिक महत्व देना. अगर राजनीति और न्याय की दोनो परिभाषाओं को एक साथ देखें तो सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में कठिनाई नहीं होगी.
मूल्यों और संसाधनों का न्यायसंगत तरीके से, आधिकारिक रूप से निर्धारण ही राजनीति का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए जिससे सामजिक न्याय सुनिश्चित होगा और राजनीति एक बड़े सामाजिक बदलाव की साक्षी बनेगी. न्याय सुनिश्चित करते समय दो स्तर पर ध्यान देना चाहिए. एक तो वितरण के स्तर पर और दूसरा क्रियान्वयन के स्तर पर. इसीलिए न्याय के दो प्रकार पर हम यहां चर्चा करेंगे- वितरणीय न्याय और प्रक्रियात्मक न्याय.


प्रक्रियात्मक न्याय (Procedural Justice) और मोदी सरकार

वितरणीय न्याय के तहत जनता के लिए संसाधन, योजना और कार्यक्रमों का सरकार द्वारा निर्धारण किया जाता है. अधिकतर सरकारें अपने काम को यहीं तक सीमित मानती हैं. वो इस पर चिंता नहीं करती कि योजना या संसाधन नीचे तक कैसे पहुंचेंगे. इसीलिए हमें योजनाओं के धरातल पर आने पर कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कई स्तर पर संसाधनों का रिसाव (leakage) देखने को मिलता है. इस रिसाव का सबसे अधिक नुकसान पंक्ति के अंतिम में खड़े व्यक्ति को होता है क्योंकि वहां पहुंचते-पहुंचते संसाधन खत्म होने लगते हैं. जो गरीब और वंचित है वो हमेशा ही गरीब रह जाता है. इसलिए जरूरी है कि वितरणीय न्याय के साथ-साथ प्रक्रियात्मक न्याय भी सुनिश्चित किया जाए. इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने विशेष कदम उठाए हैं. केंद्र सरकार ने योजनाओं के निर्माण के समय से ही जनभागीदारी का पूरा खयाल रखते हुए योजनाओं को ऐसे निर्मित किया है जिससे अधिक से अधिक लोगों तक इसका लाभ पहुंच सके. योजना के क्रियान्वयन में कई स्तर पर प्रक्रियात्मक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है. अगर क्रियान्वयन के स्तर पर न्याय सुनिश्चित नहीं होगा तो वितरणीय न्याय का कोई लाभ नहीं होगा और सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित नहीं हो पाएगा.
वितरणीय न्याय (मूल्यों-संसाधनों का निर्धारण) के साथ-साथ मोदी सरकार ने प्रक्रियात्मक न्याय ( मूल्यों- ससाधनों का वितरण के हो) के माध्यम से निचले स्तर के लोगों तक सुशासन पहुंचाने की सफल कोशिश की है जो विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं में परिलक्षित होता है. जब योजनाएं बनीं तभी इस पर भी चिंता की गई कि वो आम आदमी तक कैसे पहुंचेगी. यहां पांच उदाहरणों के माध्यमों से समझने की कोशिश की गई है.

जनधन योजना वित्तीय समावेशीकरण (financial inclusion) की दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम साबित हुई है. इस योजना का उद्देश्य ही उन लोगों को वित्तीय सेवाएं प्रदान करना था जो लंबे समय से छूटे हुए थे. इसे तय करने के लिए बैंकों ने स्थीनीय और लक्षित समूहों के बीच से ही लोगों को रोजगार दिया जिनका काम लोगों का अकाउंट खुलवाना था. इन एक लाख 26 हजार लोगों को बैंक मित्रनाम दिया गया जिन्हें अकाउंट खोलने के लिए एक मशीन उपलब्ध कराई गई जिससे वो लोगों के बीच जाकर अकाउंट खोल सकें और लोगों को बैंक तक आकर अकाउंट खुलावाना की परेशानी ना उठानी पड़े. इन बैंक मित्रों को अपने इलाके के लोगों के बारे में पता था. ये उन्हीं की भाषा में बात करते थे. इन्होंने स्थानीय लोगों को अपने स्तर पर राजी किया और उनके अकाउंट खोले. बैंक मित्रों की वजह से बैंक अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सके और ये ऐसे लोग थे जिन्हें सच में जोड़े जाने की जरूरत थी. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के दुर्गेश सोनी ने 1300 से अधिक अकाउंट खुलवाए.
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के बैंक मित्र वेदराम ने 2000 से अधिक बैंक अकाउंट खुलवाए.

चुनावी घोषणापत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि हर स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म किया जाएगा. सरकार के दो साल बीतने के बाद ये कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार में बहुत कमी आई है. मोदी सरकार ने ई-गवर्नेन्स, व्यवस्थित नीतिगत सुशासन और प्रक्रियाओं को सरल बनाकर जवाबदेही और परादर्शिता तय करने का पूरा प्रयास किया है. पारदर्शी तरीके से 2जी स्पेकट्रम और कोल ब्लॉक की बोली और आवंटन इसका बेहतरीन उदाहरण है. इससे केंद्र सरकार के खजाने में तीन लाख करोड़ से अधिक की राशि एकत्रित हुई.
पिछले दो सालों में मोदी सरकार ने दिव्यांगों को कृत्रिम अंग और यंत्र वितरण के 1800 से अधिक कार्यक्रम पूरे देश में आयोजित किए जबकि पिछले 2014 से पहले के 20 सालों में ऐसे सिर्फ 100 कार्यक्रम आयोजिक किए गए थे. सामाजिक अधिकारिता और न्याय मंत्रालय की तरफ से आयोजित होने वाले इस कैंप में सिर्फ दो सालों में ही 100 से अधिक मेगाकैंप भी आयोजित किए जा चुके हैं जिसमें हर एक कैंप में एक करोड़ रुपए से अधिक के यंत्र बांटे जा चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में हुए कैंप में 8000 लोगों को कृत्रिम अंग और यंत्र बांटे गए. इस कार्यक्रम को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया. ये स्कीम तो पहले की सरकारों में भी थी लेकिन मंत्रालय द्वारा प्रक्रियात्मक न्याय सुनिश्चित करने से ही ऐसा संभव हो सका.
मंत्रालय के अधिकारियों ने पहले कार्पोरेट कंपनियों को राजी किया कि वो इस स्कीम में अपना सीएसआर फंड का पैसा दें. सांसदों और विधायकों को इस स्कीम से अवगत कराने के लिए जागरुकता कार्यक्रम किए गए और पत्र लिखे गए. हालांकि इस स्कीम के तहत खर्च का बड़ा हिस्सा मंत्रालय द्वारा ही दिया जाता है लेकिन थोड़ा हिस्सा जनप्रतिनिधियों को भी खर्च करना पड़ता है. पता लगने पर जनप्रतिनिधि तुरंत राजी होने लगे क्योंकि उन्हें बना-बनाया एक बड़ा कार्यक्रम अपने क्षेत्र के लिए मिल रहा था. सही लाभार्थियों के चयन के लिए मंत्रालय ने जिलाधिकारी को सीधे तौर पर दिव्यांगों की फोटो सहित सूची बनाने को कहा जिससे सही सूची तैयार हो सकी. पहले ये काम एनजीओ किया करते थे जिससे कई बार कमियां देखने को मिलती थीं. प्रक्रियात्मक स्तर पर छोटे से बदलाव ने देश के आठ करोड़ दिव्यांगों के को एक बड़ा अवसर उपलब्ध करा दिया.

सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय मंत्रालय ने पिछले वित्तीय वर्ष में 3.30 करोड़ छात्रों को 7465 करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप बांटी. ये छात्र दलित, ओबीसी और ईबीसी वर्ग के थे. पिछली सरकार में 2012-13, 2013-14 की धनराशि कई राज्यों में बांटी नहीं जा सकी थी. मोदी सरकार ने राशि के सही समय पर उपयोग के लिए अधिकारी राज्यों में भेजे. मंत्रालय से सभी प्रकार की स्कॉलरशिप की जानकारी को एक प्रपत्र के माध्यम से सांसदों, विधायकों और जिलाधिकारियों को भेजा और उनसे आग्रह किया कि अपने क्षेत्र के कमजोर वर्गों के छात्रों के बीच इन स्कॉलरशिप को प्रचारित करें. इस बार उच्चशिक्षण संस्थानों के दलित और पिछड़े छात्रों ने भी बड़ी संख्या में स्कॉलरशिप प्राप्त की. मंत्रालय ने सोशल मीडिया के माध्यम से इन स्कॉलरशिप को प्रचारित करने का काम किया क्योंकि आज के छात्रों के बीच सोशल मीडिया बहुत लोकप्रिय है.
सरकार द्वारा प्रक्रियात्मक न्याय सुनिश्चित तक करने के लिए जैम त्रिवेणी” (JAM Trinity) – जनधन, आधार और मोबाइल पर काम किया जा रहा है जिसके तहत कैश ट्रांसफर के लाभ को रिसाव-मुक्त बनाते हुए सीधे लक्षित व्यक्ति के अकाउंट तक भेजा जा सकेगा. पहले जो योजनाएं बनी उनमें कई स्तर पर रिसाव रहता था और लक्षित व्यक्ति तक लाभ नहीं पहुंच पाता था. जैम के माध्यम से सब्सिडी की राशि सीधे लक्षित व्यक्ति तक पहुंच सकेगी और इससे सरकार को रिसाव कम करने में मदद मिलेगी और सब्सिडी खत्म करने जैसी बातों पर रोक लगेगी.सरकार का साफ तौर पर माना है कि गरीब को सब्सिडी मिलनी चाहिए लेकिन बिचैलिया नहीं होना चाहिए. जैम तकनीकी से बिचौलिए समाप्त होंगे और इससे सब्सिडी का रिसाव खत्म होगा ना कि सब्सिडी.

ऊपर दिए गए उदाहरणों से ये साफ होता है कि कैसे मोदी सरकार प्रक्रियात्मक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है. प्रक्रियात्मक न्याय सुनिश्चित किए बिना योजनाओं का लाभ सही व्यक्ति तक नहीं पहुंच सकता. इसलिए केंद्र सरकार जनसहभागिता, जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ काम कर रही है जिससे समाज के निचले स्तर तक सुशासन सुनिश्चित किया जा सके और अतिम व्यक्ति को योजनाओं का लाभ मिल सके.

सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण

लेख के पहले हिस्से में हमने देखा कि कैसे केंद्र सरकार प्रक्रियात्मक न्याय पर ध्यान देकर समाज के वंचित वर्ग के लिए सुशासन सुनिश्चित कर रही है. इस हिस्से में हम सरकार द्वारा पिछले दो साल में सामाजिक न्याय के लिए किए गए प्रयासों की चर्चा करेंगे.

सकारात्मक कार्यवाही (Affirmative Action)
सकारात्मक कार्यवाही (Affirmative Action) को लेकर ये सरकार बहुत ही सजग और प्रतिबद्ध है और नए तरीके से प्रयास कर रही है. आजादी के बाद से ही सकारात्मक कार्यवाही के नाम पर नौकरियों में आरक्षण की बात कही गई जो बिल्कुल सही था लेकिन जब समाज के दलित और पिछड़े वर्ग से लाखों की संख्या में युवा शिक्षित हो रहे हैं तो ये संभव नहीं कि उन सबके लिए सरकारी नौकरियां उपलब्ध हो पाएंगी. ऐसे में केंद्र सरकार ने नौकरी के साथ-साथ उद्यमिता (Entrepreneurship) पर बल दिया है.

सकारात्मक कार्यवाही (Affirmative Action) को पुनरभाषित करना

राजनीतिक बदलाव ----> आर्थिक बदलाव ----> सामाजिक बदलाव (सामाजिक बदलाव+सामाजिक विकास)

मोदी सरकार ने 220 रुपए करोड़ का दलित वेंचर कैपिटल फंड बनाया है जिसके माध्यम से दलित समाज के युवा अपना उद्यम लगाने के लिए सरकार से लोन ले सकते हैं. इसमें उन्हें कई प्रकार की रियायतें दी गई हैं. मुद्रा योजना के तहत 25 लाख से अधिक दलित और पिछड़े वर्ग के युवाओं को शिशु, किशोर और युवा कैटेगरी के तहत छोटे-छोटे लोन दिए गए हैं जिससे वो अपना उद्यम खड़ा कर रहे हैं है. मोदी सरकार हाल में ही एक बहुत ही क्रांतिकारी योजना शुरू की है जिसका नाम है स्टैंड अप इंडिया. इसके तहत दलित, आदिवासी और महिला वर्ग के लोगों को उद्यम शुरू करने के लिए बैंकों से दस लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक का लोन मिलेगा. देश में इस समय 1.25 लाख बैंक शाखाएं हैं. हर शाखा को दो वंचित वर्ग (दलित, आदिवासी या महिला) के लोगों को लोन देना ही होगा और उन्हें उद्यम खड़ा करने में मदद करनी होगी. इस तरह पूरे देश में 2.50 लाख उद्यमी खड़े होंगे. इस तरह कि मोदी सरकार अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से वंचित वर्ग से उद्यमी तैयार कर रही है. इनके छोटे-बड़े उद्यमों से ना सिर्फ ये सशक्त होंगे बल्कि करोड़ों लोगों को सीधे तौर पर रोजगार मिलेगा और समाज का सबसे वंचित वर्ग समृद्ध और विकसित हो सकेगा.

 सामाजिक न्याय के लिए उठाए गए कदम

मोदी सरकार ने पिछले साल में सामाजिक न्याय और वंचित वर्गों के सशक्तिकरण के लिए बहुत से कदम उठाए जिसमें से कुछ प्रमुख नीचे दिए गए हैं:

* प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (Micro Units Development Refinance Agency) के तहत दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज के युवाओं को प्राथमिकता दी गई. देश के 5 करोड़ 77 लाख छोटे उद्यमों में से 62 फीसदी उद्यमी दलित, पिछड़े और आदिवासी वर्ग से आते हैं.

* दलित, पिछड़े और ईबीसी वर्ग के तीन करोड़ तीस लाख विद्यार्थियों को 7400 करोड़ रुपए से अधिक की स्कॉलरशिप बांटी गई.

* मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के 23 आईआईटी में पढ़ने वालों सभी दलित, आदिवासी और दिव्यांग छात्रों की फीस माफ कर दी. जिन परिवारों की वार्षिक आय पांच लाख से कम है उन्हें 66 फीसदी की छूट दी जा रही है और जिसकी वार्षिक आय एक लाख रुपए से कम है ऐसे हर छात्र की फीस माफ कर दी गई है.

* अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के छात्रों के लिए 2014-15 में नेशनल फैलोशिप शुरू की गई. ओबीसी छात्रों के लिए छात्रावास निर्माण का खर्च 100 फीसदी तक बढ़ा दिया गया. ओबीसी छात्रों के लिए दिए जाने वाले डॉ अंबेडकर शिक्षण ऋण के तहत लाभार्थियों की संख्या बढ़ा दी गई.

* राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम ने 297 करोड़ रुपए से अधिक की राशि एक लाख 67 हजार विद्यार्थियों को बांटी और 30 हजार से अधिक पिछड़े युवाओं को कौशल विकास में प्रशिक्षित किया.

* 2014 से अबतक 1800 से अधिक कृत्रम अंग और यंत्र वितरण के कैंप आयोजित किए जा चुके हैं. एक करोड़ से अधिक की लागत वाले 100 मेगा कैंप भी आयोजित हुए हैं.

* ये सरकार समाज के वंचित वर्ग के वित्तीय समावेशीकरण और सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. सरकार ने पिछले साल 9.40 करोड़ सुरक्षा बीमा पॉलिसी दी जिसमें से 2.96 करोड़ वंचित समाज के लोगों को दी गईं. 21 करोड़ से अधिक जनधन के अकाउंट खोले जा चुके हैं जिसमें अधिकतर समाज के दलित, पिछड़े और वंचित वर्ग से आने वाले लोग हैं.

* प्रधानमंत्री मोदी अंबेडकर पंचतीर्थकी घोषणा की है जिसके तहत भारत रत्न भाबासाहेव भीमराव अंबेडकर से जुड़े पांच स्थलों को तीर्थ के रूप में विकसित किया जाएगा.

* गरीबी रेखा से नीचे रही रही महिलाओं के लिए उज्जवला योजना शुरू की गई है जिसके तहत पांच करोड़ महिलाओं को अगले तीन साल में गैस चूल्हा दिया जाएगा. इस वित्तीय वर्ष में 1.50 करोड़ महिलाओं को इस योजना का लाभ मिलेगा.

* इस वित्तीय वर्ष के बजट को भारत का बजट कहा जा रहा है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र का विशेष ध्यान दिया गया है. प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक इस देश के गरीब और वंचित का है.

* ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएं देने के लिए रर्बन मिशन की शुरुआत की गई है. जिसके तहत 5-7 गांवों का समूह बनाकर उनमें शहरी नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. इस समूह में 20 से 25 हजार लोग हुआ करेंगे.

ऊपर की तमाम बातों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि 2014 में राजनीति बदलाव के बाद मोदी सरकार समाज के सबसे वंचित वर्ग की आर्थिक स्थिति में बदलाव लाकर बड़े सामाजिक बदलाव की दिशा में आगे बढ़ रही है. ये सरकार सुशासन, सामाजिक न्याय, अंत्योदय और समरसता के लिए प्रतिबद्ध है. ये जरूर है कि इस सरकार ने सुशासन को सामाजिक न्याय से जोड़ने की सफल कोशिश की है.

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