Tuesday, 27 November 2018

प्रभावी बनती आयुष्मान भारत योजना

आयुष्मान भारत पर दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा लेख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 23 सितंबर, 2018 को रांची से शुरू की गई आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को अब दो महीने से अधिक हो चुके हैं. इस योजना को क्रियांवित कर रही राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी (एनएचए) के मुताबिक अबतक साढ़े तीन लाख से अधिक लोगों को इस योजना का लाभ मिल चुका है जिस पर 450 करोड़ रुपए का व्यय आया है. आयुष्मान भारत के नाम से प्रसिद्ध हो रही इस योजना में देश के सबसे गरीब और कमजोर तबके के 10 करोड़ से अधिक परिवारों यानी करीब पचास करोड़ लोगों को पांच लाख रुपए तक की द्वितीयक और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाएंगी. इन स्वास्थ्य सुविधाओं के तहत कैशलेस आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने की बात कही गई है. लेकिन देखने की बात ये है कि क्या सचमुच ये दावे सही हो पाएंगे क्योंकि कई बार देखने में आता है कि स्थानीय स्तर पर लचर प्रशासनिक तंत्र, खर्च का बोझ, विभिन्न स्तर पर लीकेज और भ्रष्टाचार ऐसी योजनाओं को कमजोर कर देते हैं और लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंच पाता.  
आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत सभी सरकारी अस्पतालों और आवंटित किए गए निजी अस्पतालों में ऐसे करीब 1350 मेडिकल पैकेज दिए जा रहे हैं जिसके तहत फ्री में इलाजा कराया जा सकता है. इसमें सामान्य इलाज, दवा, सर्जरी, डे केयर और जांच आदि का खर्च शामिल हैं. कोई भी अस्पताल इलाज करने से मना नहीं कर सकता और इसमें पहले से चली आ रही बीमारियां भी शामिल हैं. योजना में महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाएगी. इसमें सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के तहत दिए गए शाश्वत स्वास्थ्य सुरक्षा के लक्ष्य को भी पूरा करने की कोशिश है.
ऐसा देखने में आता है कि स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से आमदनी से ज्यादा खर्च होने लग जाता है जो एक बड़ी दिक्कत बन जाती है. 2011-12 में साढ़े पांच करोड़ भारतीय इसलिए गरीबी रेखा से नीचे आ गए क्योंकि परिवार में किसी सदस्य को बड़ी स्वास्थ्य समस्या हो गई थी. कई अध्ययनों में पता लगा है कि बीमारी बढ़ने से दवा, जांच और रखरखाव के खर्च में बढ़ोत्तरी हो जाती है जो विकासशील देशों के लोगों को गरीबी की तरफ खींचती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 63 फीसदी लोगों को अपने इलाज का खर्च खुद देना पड़ता है क्योंकि वो किसी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना का हिस्सा नहीं होते. इसलिए भारत सरकार द्वारा लाई गई आयुष्मान योजना एक बेहतर कदम है जो ना सिर्फ गरीब आदमी को और गरीब बनाने से रोकेगा बल्कि एक स्वस्थ समाज, बेहतर मानव श्रम और रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगा.
संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है इसलिए केंद्र की तुलना में स्वास्थ्य सुविधा देने की राज्य की जिम्मेदारी अधिक है. लेकिन इस योजना में केंद्र सरकार ने ही स्वास्थ्य सुरक्षा देने का जिम्मा लिया है. इससे राज्य का आर्थिक बोझ कम होगा. इसलिए राज्यों को स्वास्थ्य सुविधा पर होने वाले खर्च को अधिक से अधिक अस्पताल और जांच की बुनियादी सुविधा आदि देने पर लगाना चाहिए. बिना राज्य सरकारों और जिला प्रशासन के सहयोग के इस योजना को सफल नही बनाया जा सकता.
अगर सामाजिक पिरामिड के सबसे निचले तबके के लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचानी हैं तो सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा देने भर से बहुत कुछ नहीं होगा. राज्य सरकारों को भी कमर कसनी होगी. स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा. पिछले दो महीने के आंकड़ों से पता लगता है कि आयुष्मान भारत के तहत 68 फीसदी लोगों ने निजी क्षेत्र के अस्पतालों में जाकर इलाज कराना ज्यादा ठीक समझा. राज्य सरकारों के साथ सांसदों, विधायकों और अन्य जागरुक लोगों को भी इस दिशा में पहल करनी होगी कि स्थानीय स्तर तक स्वास्थ्य सुविधाएं ठीक तरीके से पहुंचे. एक ऐसी ही पहल हमीरपुर सांसद अनुराग ठाकुर ने सांसद मोबाइल स्वास्थ्य सेवा नाम से की है जिसके तहत जांच यंत्रों से लैस वैन खुद लोगों तक पंहुचती है और जांच करती है. इस वैन के माध्यम से 40 तरह की जांचें की जा सकती हैं. अब तक ये वैन 25 हजार से ज्यादा लोगों को लाभ पहुंचा चुकी है.
एक बड़ी समस्या ये भी है कि इस योजना से जिन्हें सीधे लाभ पहुंचने वाला है उन्हें सूचना कैसे दी जाए. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने इस योजना के तहत देश के पहले हेल्थ और वेलनेस सेंटर की शुरुआत छत्तीसगढ़ से नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले से की जो बहुत संवेदनशील और पिछड़ा है. अब प्रधानमंत्री सभी लाभार्थी 10 करोड़ परिवारों को सीधे पत्र लिखने जा रहे हैं. इसके साथ-साथ और भी कदम उठाने की जरूरत है जिससे उन लोगों को समय से योजना की जानकारी पहुंच सके जो इसके सच्चे अधिकारी हैं. 
अमेरिका में भी ऐसी ही स्वास्थ्य योजना शुरू की गई थी जिसमें समाज के सबसे कमजोर तबके को स्वास्थ्य सुविधा सुनिश्चित करने का प्रावधान किया गया. 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा लागू की गई पेसेंट प्रोटक्शन और अफोर्डेबल केयर नाम की इस योजना को ओबामा केयर के नाम से भी जाना जाता है. इस योजना के बड़े अच्छे परिणाम सामने आए और उससे कम आमदमी वाले समूहों को विशेषतौर पर लाभ पहुंच रहा था लेकिन 2016 के बाद से इस योजना के लाभार्थियों और स्वास्थ्य सुविधाओं का दायरा लगातार कम किया गया है क्योंकि अमेरिका में एक नई सरकार बन गई जो पिछली सरकार की योजना को पुराने स्वरूप में स्वीकारने को राजी नहीं है. 
जहां चुनौतियां अधिक हैं वहां प्रयास अधिक करने होंगे. अधिक से अधिक लोगों की सहभागिता चाहिए होगी. स्वास्थ्य भी एक ऐसा विषय है जो वैसे तो राज्य का विषय है लेकिन इस पर सभी को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है. अभी देखने में आता है कि किसी राज्य में स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत अच्छी हैं तो कहीं मूलभूत ढांचा भी नहीं है. जैसे, दिल्ली, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में प्रति हजार व्यक्ति पर एक से अधिक डॉक्टर है लेकिन उत्तर प्रदेश औऱ बिहार जैसे राज्यों में ये आंकड़ा काफी कम है. राष्ट्रीय स्तर की अगर तुलना करें तो प्रति हजार व्यक्ति पर 0.62 डॉक्टर है. दिल्ली और तमिलनाडु में जहां हर 253 और 353 लोगों पर एक डॉक्टर है जो स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों के बराबर है वहीं झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में आज भी 6000 लोगों पर एक डॉक्टर है. स्वास्थ्य सुविधाओं के इस असंतुलन को कम करने की कोशिश भी होनी चाहिए.
अभी तो भारत की अधिकांश आबादी युवा है इसीलिए उनकी जरूरतें भी अलग तरह की हैं. लेकिन आने वाले समय में बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी. इसलिए अभी से स्वास्थ्य से क्षेत्र में एक बेहतर आधारभूत ढांचा तैयार करना पड़ेगा. इसमें केंद्र, राज्य के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों को भी निजी प्रयास करने ही पड़ेंगे. अगर समाज स्वस्थ होगा तो अर्थव्यवस्था भी मजबूत रहेगी और समाज समृद्ध बनेगा. इसलिए आयुष्मान भारत भविष्य के भारत के लिए एक बेहतर कदम साबित हो सकता है.

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