Wednesday 21 November 2018

अंग्रेजी की दुनिया में हिंदी की धमक



दैनिक जागरण 23 अक्टूबर 2018 में प्रकाशित मेरा लेख:

पिछले दिनों लटियन्स दिल्ली के एक बड़े होटल में अमेरिकी दूतावास के एक अधिकारी से मुलाकात हुई और विजिटिंग कार्ड का आदान-प्रदान हुआ. उनका विजिटिंग कार्ड एक तरफ तो अंग्रेजी में था लेकिन दूसरी तरफ वही जानकारी हिंदी में भी थी. पहले इस तरह की मीटिंग में मिलने वाले विजिटिंग कार्ड अंग्रेजी भाषा में होते थे. ये ऐसा पहला अनुभव था और लगा कि महज संयोग होगा. लेकिन अगले एक-दो दिन में ही देखा कि मिरर नाऊ ( जो मूलतः अंग्रेजी न्यूज चैनल की श्रेणी में आता है) पर हिंदी में बहस हो रही है. उसी के बगल वाले रिपब्लिक न्यूज चैनल पर अरनब गोस्वामी और टाम्स नाऊ पर नविका कुमार हिंदी में बड़ी शान से लच्छेदार मुहावरे बोलते नजर आ रहे हैं. किसी अंग्रेजी चैनल पर देखा तो उनका हैशटैग हिंदी में था जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को समझ आ सके जिससे उस हैशटैग पर अधिक से अधिक ट्वीट आ सकें. इन दिनों प्रिंट और वायर जैसे अंग्रेजी में लॉन्च हुए पोर्टल की अंग्रेजीदां रिपोर्टर्स हिंदी में वीडियो करते नजर आ रही हैं. ये सारी घटनाएं साफ इशारा कर रही थीं कि हिंदी सामाजिक पिरामिड के निचले तल से होती हुई नई ऊंचाइयां तय कर रही है.

फिर देखने में आया कि मामला न्यूज चैनल और पोर्टल तक सीमित नहीं है. दुनिया की सबसी बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अमेजॉन बड़े गौरव से टीवी पर बता रही है कि वेबसाइट पर जानकारी हिंदी में भी उपलब्ध है. नेटफ्लिक्स और अमेजॉन प्राइम पर दुनिया के अलग अलग हिस्सों में विभिन्न भाषाओं में बनी बेहतरीन बेहतरीन वेब सिरीज आपको हिंदी में एक क्लिक में मिल जाएगी. गूगल, फेसबुक सहित दूसरी बड़ी वेबसाइटें तो पहले से हिंदी में कामकाज शुरू कर चुकी थीं.

बड़ी बात तो तब हो गई जब देखा गया कि दुनिया की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी हिंदी में कुछ कामकाज शुरू किया और ट्विटर पर हिंदी में सूचना देने का क्रम शुरू किया.


पहले हिंदी के लंबरदारों ने घोषणा की थी भूंमडलीकरण और बाजारीकरण के दौर में हिंदी सीमित होगी और अंग्रेजी का दबाव बढ़ेगा. लेकिन ऊपर के सभी उदाहरणों से पता लगता है कि हिंदी का दायरा पिछले कुछ समय में ना सिर्फ ऊर्ध्वाधर (हॉरिजॉन्टल) फैला है बल्कि क्षैतिज (वर्टिकल) रूप से भी आगे बढ़ा है. और ये एक बड़ा बदलाव है. जहां पहले आधुनिक हिंदी 19वीं सदी से ही लोकप्रिय होनी शुरू हुई देश के बड़े हिस्से में साहित्य, सिनेमा और समाचारपत्र के माध्यम से फैल गई वहीं भूमंडलीकरण और इंटरनेट के दौर की हिंदी ने पुराने बहुत से बैरियर तोड़ दिए और उन तमाम जगहों पर उयोग में आने लगी है जहां पहले इसका पहुंचना संभव नहीं था. इंटरनेट की पतली गली और बाजार की भारी मांग ने हिंदी की धमक कायम करने में बड़ी भूमिका अदा की है.

आने वाले समय में हालात और भी बेहतर होने की उम्मीद है लेकिन अभी एक अमेरिकी अध्ययन में पता लगा है कि अब हिंदी में अंग्रेजी से अधिक ट्वीट और रिट्वीट हो रहे हैं. इसका कुछ श्रेय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जाता है जिनकी लोकप्रियता पिछले चार सालों में दूसरे नेताओं और अभिनेताओं से कहीं ज्यादा बनी हुई है. मिशिगन विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि 2017 में किए 15 में से 11 रिट्वीट मैसेज हिंदी में थे. इस तरह इंटरनेट पर हिंदी ने अंग्रेजी को प्रसार संख्या के मामले में काफी पीछे छोड़ दिया है.

2017 में केपीएमजी और गूगल द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि भारत में 2021 तक भारतीय भाषाएं बोलने वाले 53.6 करोड़ लोग ऑनलाइन माध्यमों का इस्तेमाल कर रहे होंगे. वहीं अंग्रेजी के करीब 20 करोड़ ऑनलाइन यूजर होंगे.  वैसे इंटरनेट की भाषा को लेकर भारत में जो बदलाव पिछले कुछ वर्षों में हुआ, यह बदलाव दुनिया में पहले देखा जा चुका था.  1990 के दशक के मध्य तक करीब 90 फीसदी लोग अंग्रेजी में इंटरनेट का उपयोग करते थे जो संख्या 2011 में घटकर महज 27 फीसदी रह गई और लोग गैर-अंग्रेजी भाषाओं में इंटरनेट का इस्तेमाल अधिक करते नजर आए. वैसे आज भारत में करीब  12.5 करोड़ यूजर ऐसे हैं जो अंग्रेजी में इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. ये संख्या अमेरिका के बाद सबसे अधिक है. लेकिन देखने में ये भी आया है कि जब लोगों को अवसर उपलब्ध हो रहे हैं तो अपनी भाषा में इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. अध्ययन के मुताबिक 2021 तक करीब 20 करोड़ हिंदी में इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे होंगे जो सभी भारतीय भाषाओं का करीब 38 फीसदी होगा.

आजादी के आंदोलन के समय से ही हिंदी एक प्रमुख माध्यम के रूप में उभरी थी. 1826 में पहला हिंदी अखबार उदंत मातंड निकला और सन 1857 के करीब 500 की संख्या में भाषाई अखबार निकल रहे थे जिसमें से कई हिंदी में थे. अखबारों के माध्यम से बढ़ती राष्ट्रीय चेतना की भावना का संज्ञान लेते हुए अंग्रेजी हुकुमत ने 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट पारित किया और भाषाई अखबारों पर तमाम पाबंदियां लगाने की कोशिश हुई. 1970 के दशक में नेशनल रीडरशिप सर्वे में पहली बार ये बात सामने आई कि भाषाई अखबारों ने अंग्रेजी के अखबारों को पीछे छोड़ते हुए पहले दस सबसे अधिक प्रसार संख्या वाले अखबारों में जगह बनाई. बढ़ती साक्षरता, सस्ती होती तकनीकी और बढ़ता शहरीकरण इसके बड़े कारण थे. प्रसिद्ध समाजशास्त्री रॉबिन जैफ्री ने इसे अखबार की समाचार पत्र क्रांति कहा.

इंटरनेट और मोबाइल के दौर में हिंदी और भी तेजी से उभर कर सामने आई है क्योंकि अब तो तकनीकी और भी सस्ती हुई, साक्षरता दर और शहरीकरण भी पहले से मुकाबले काफी बढ़ा है. बाजार तो सप्लाई और डिमांड पर चलता है. हिंदी की डिमांड तेजी से बढ़ी है तो विभिन्न माध्यमों से हिंदी का प्रसार भी तेजी से बढ़ा है. इस बार अलग ये हुआ है कि हिंदी सिर्फ निचले पायदान पर नहीं मजबूत हुई है बल्कि अभिजनवादी तबके में भी इसकी स्वीकार्यता बढ़ी है. इंडियन हैबिटैट सेंटर की स्टैंडअप कॉमेडी में सुनाए जाने वाले हिंदी चुटकुलों से लेकर स्टार स्पोर्ट्स जैसे प्रतिष्ठित चैनल द्वारा हिंदी को समर्पित चैनल शुरू करना इसी बात की तरफ इशारा करता है कि हिंदी पब्लिक स्फेयर बहुत बड़ा हो चुका है और बाजार के संचालकों ने इसकी क्रय क्षमता को भी भांप लिया है.

कभी जसदेव सिंह की कमेंट्री की से, कभी अटलजी जैसे जनप्रिय नेताओं के भाषणों और सबसे अधिक हिंदी फिल्मों की वजह से पिछले दशकों में हिंदी लोकप्रिय होती चली गई और एक नई तरीके की भाषा सामने आई. बाजारवाद के इस दौर में भी एक नई हिंदी उभरकर आ रही है जिसमें तमाम भाषाओं और बोलियों के शब्द हैं और अंग्रेजी का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है.

अगर हिंदी भाषा को सजह भाव से बढ़ते देखना है तो इसे स्वीकार करना होगा. बाजार और भाषा आपस में सामन्जस्य बैठा लेंगे. माना कि हिंदी पब्लिक स्फेयर दुनिया के पिरामिड में निचले पायदान पर आता है लेकिन मशहूर प्रबंधन गुरू सीके प्रहलाद में काफी पहले अपनी एक किताब में लिख दिया था कि अब पिरामिड के निचले तल पर जाकर ही सफलता और भाग्य को खोजना होगा.

हिंदी इसी तरह अपना प्रभाव बढ़ाती जा रही है. हिंदी ने बाजार को और बाजार ने हिंदी को स्वीकार कर लिया है और धीरे-धीरे हिंदी वहां पहुंच रही है जहां हिंदी को उसके बड़े समर्थक भी नहीं पहुंचा सकते थे.

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