नानाजी देशमुख पर दैनिक जागरण मे प्रकाशित मेरा लेख
ग्रामोदय के माध्यम से अंत्योदय के सपने को
साकार करने की पहल करने वाले नानाजी देशमुख को भारत सरकार ने ‘भारत
रत्न’ से सम्मानित करने का फैसला किया है. एक कुशल संगठक, विचारक,
क्रांतिकारी,
राजनेता
होने के साथ-साथ नानाजी देशमुख एक ऐसे समाजशिल्पी भी थे जिन्होंने युगानुकूल समाज
रचना के माध्यम से गांधी के ग्राम स्वराज, दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय और
जयप्रकाश नारायण के सर्वोदय के विचार दर्शन को ग्रामोदय के माध्यम से मूर्त रूप
देने की सफल और सार्थक कोशिश की.
महाराष्ट्र में जन्मे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ के माध्यम से देश को अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले चंडिकादास अमृतराव ‘नानाजी’
देशमुख
ने उत्तर प्रदेश को अपनी कर्मभूमि बनाया जहां उन्हें संघ का प्रचारक बनाकर भेजा
गया. गोरखपुर को केंद्र बनाकर नानाजी देशमुख ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में संघ के
काम को विस्तार दिया. उन्होंने 1950 में गोरखपुर में पहले सरस्वती शिशु
मंदिर की स्थापना करवाई जिसकी आज 18000 से अधिक शाखाएं पूरे देश में विद्या
भारती के माध्यम से काम करती हैं. उत्तर प्रदेश आने पर ही नानाजी की मुलाकात
दीनदयाल उपाध्याय से हो गई थी. हालांकि दोनों उम्र में बराबर थे लेकिन नानाजी
उन्हें अपना वरिष्ठ ही मानते थे. संघ की योजना से जब लखनऊ में ‘स्वदेश’
और ‘राष्ट्र
धर्म’ पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया गया तो नानाजी को उसका प्रबंध निदेशक
और अटल बिहारी वाजपेयी को संपादक नियुक्त किया गया. मार्गदर्शक की भूमिका में
दीनदयाल उपाध्याय खुद थे.

1951 में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से
दीनदयाल उपाध्याय के नेतृत्व में संघ के प्रतिबद्ध स्वयंसेवकों की टोली भारतीय
जनसंघ में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मदद करने के लिए भेजी गई तो उनमें नानाजी
देशमुख प्रमुख थे. नानाजी को उत्तर प्रदेश का काम दिया गया जिसे उन्होंने अगले 25
साल बखूबी निभाया. जनसंघ स्थापना के अगले 5-6 साल में ही
उत्तर प्रदेश के संगठन मंत्री के रूप में उन्होंने प्रदेश, जिले और तहसील
स्तर पर संगठन का काम मजबूत किया. उत्तर प्रदेश में जनसंघ की ताकत बढ़ाने में
दीनदयाल के मार्गदर्शन, अटल बिहारी की भाषणकला के साथ-साथ नानाजी के
सांगठनिक कौशल का बड़ा योगदान था. उनके दूसरी पार्टी के नेताओं जैसे राम मनोहर
लोहिया और चौधरी चरण सिंह से भी बहुत अच्छे संबंध थे. एक बार तो नानाजी जनसंघ के
वर्ग में राममनोहर लोहिया को लेकर गए जिससे उन्हें जनसंघ को समझने में मदद मिली
थी. उत्तर प्रदेश में 1967 की चरण सिंह के नेतृत्व वाली संविद
सरकार बनाने में नानाजी की बड़ी भूमिका थी. दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमय
परिस्थितियों में मौत होने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के हाथ में संगठन की कमान दी
गई तो उनकी टीम में महासचिव के रूप में कैलाशपति मिश्र, यादवराव जोशी,
लालकृष्ण
आडवाणी के साथ-साथ नानाजी भी शामिल हुए.